ईरान और इज़राइल के बीच का विवाद किसी साधारण सीमा विवाद से कहीं आगे है। यह संघर्ष धर्म, राजनीति, शक्ति और वर्चस्व की जटिल परतों में लिपटा हुआ है, जो पिछले चार दशकों से लगातार बढ़ता जा रहा है। यह केवल दो देशों की दुश्मनी नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया की शांति को प्रभावित करने वाला विषय बन चुका है।
कैसे शुरू हुआ यह टकराव?
1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद अयातुल्ला खुमैनी ने इज़राइल के अस्तित्व को नकारते हुए उसे “अवैध राष्ट्र” कहा। तभी से दोनों देशों के बीच कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं। इज़राइल जहां खुद को एक यहूदी राष्ट्र के रूप में देखता है, वहीं ईरान इस्लामी गणराज्य है और फ़िलिस्तीन का खुला समर्थक।
विवाद के प्रमुख कारण
फ़िलिस्तीन का समर्थन
ईरान फ़िलिस्तीन के संगठन “हमास” और “हिज़बुल्लाह” को समर्थन देता है, जो इज़राइल के खिलाफ सक्रिय हैं। इज़राइल इसे अपनी सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा मानता है।
ईरान का परमाणु कार्यक्रम
इज़राइल को यह डर है कि ईरान यदि परमाणु हथियार बना लेता है, तो वह उस पर हमला कर सकता है। इसी वजह से इज़राइल ने समय-समय पर ईरान के परमाणु केंद्रों पर साइबर हमले और गुप्त ऑपरेशन किए हैं।
सीरिया और लेबनान में दखल
सीरिया में ईरान समर्थित मिलिशिया की मौजूदगी और लेबनान में हिज़बुल्लाह के बढ़ते प्रभाव को इज़राइल अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है और बार-बार उन पर हवाई हमले करता है।
हाल की घटनाएं (2024-2025)
- अप्रैल 2024 में ईरान ने पहली बार सीधे तौर पर इज़राइल पर ड्रोन और मिसाइल हमले किए।
- इसके जवाब में इज़राइल ने ईरान की कई सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया।
- दोनों देशों की सेनाएं अब हाई अलर्ट पर हैं और पश्चिम एशिया युद्ध की कगार पर खड़ा दिख रहा है।
दुनिया का रुख
देश/संगठन | स्थिति |
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अमेरिका | इज़राइल के साथ, ईरान पर प्रतिबंध |
रूस | ईरान के करीब, बातचीत की वकालत |
संयुक्त राष्ट्र | शांति की अपील |
भारत | संतुलन बनाकर चलने की कोशिश, दोनों से रिश्ते |
भारत की भूमिका
भारत के लिए यह विवाद बहुत संवेदनशील है क्योंकि:
- ईरान से ऊर्जा आयात होता है,
- और इज़राइल से रक्षा और तकनीकी सहयोग।
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भारत ने हमेशा शांति और कूटनीति का समर्थन किया है।
क्या होगा आगे?
यदि कूटनीतिक समाधान नहीं निकला, तो यह विवाद युद्ध में बदल सकता है जिसका असर सिर्फ ईरान-इज़राइल तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित हो सकती है — खासकर तेल की कीमतों, वैश्विक अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर।