बकरीद, जिसे इस्लाम में ईद-उल-अजहा के नाम से जाना जाता है, त्याग और समर्पण का प्रतीक त्योहार है। यह पर्व हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की उस घटना की याद में मनाया जाता है, जब उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया था। उनका यह त्याग और आज्ञा पालन इस्लाम धर्म में आदर्श के रूप में माना जाता है।
कुर्बानी का इतिहास और मर्म
इस्लामी परंपरा के अनुसार, जब हज़रत इब्राहीम को सपना आया कि वे अपने बेटे हज़रत इस्माईल को अल्लाह की राह में कुर्बान कर रहे हैं, तो उन्होंने बिना झिझक उस पर अमल करने का निश्चय कर लिया। जैसे ही वह कुर्बानी देने को तैयार हुए, अल्लाह ने एक जानवर भेजा और हज़रत इस्माईल को सुरक्षित रखा। इसी स्मृति में हर साल मुसलमान कुर्बानी देते हैं, जो ईमान और समर्पण का प्रतीक मानी जाती है।
बकरीद का उद्देश्य क्या है?
बकरीद पर दी जाने वाली कुर्बानी केवल एक धार्मिक रस्म नहीं है, बल्कि इसका गहरा आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश है:
ईमान और विश्वास की परीक्षा: यह दिन हमें यह सिखाता है कि एक सच्चा ईमानदार व्यक्ति अल्लाह के हर आदेश को पूरा करने के लिए तैयार होता है।
त्याग की भावना: अपने सबसे प्रिय वस्तु को भी ईश्वर के आदेश पर बलिदान करने का जज़्बा इस त्योहार की आत्मा है।
सामाजिक भलाई: कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है – गरीबों, रिश्तेदारों और अपने लिए। इससे समाज में समानता और भाईचारे को बढ़ावा मिलता है।
समकालीन समय में बकरीद का महत्व
आज जब समाज में भेदभाव और स्वार्थ की भावना बढ़ रही है, बकरीद हमें मानवता, दया और सेवा का पाठ पढ़ाता है। यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि कुर्बानी सिर्फ जानवर की नहीं, बल्कि अपने अंदर की बुराई, घमंड और ईर्ष्या को खत्म करने की होनी चाहिए।
बकरीद का सामाजिक संदेश
इस त्योहार का असली उद्देश्य जरूरतमंदों तक मदद पहुंचाना है। जब हम अपने पास मौजूद चीज़ों में से दूसरों को देते हैं, तो वही असली इंसानियत होती है। बकरीद हमें यह सिखाता है कि इंसान का सबसे बड़ा धर्म दूसरों की मदद करना और सबके साथ प्रेम से जीना है।